कालाधन : सब बातें हैं बातों का क्या
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के परम सहयोगी हेनरिक गोलबल्स ने कहा था कि ‘एक झूठ को यदि सौ बार बोला जाय तो वह सच सा लगने लगता है। खास कर यदि यह झूठ सत्ता की ओर से फैलाया जाय तो बिल्कुल सत्य सा आभास देने लगता है।’ उसी युद्दा के दौरान या 1971 भारत-पाकिस्तान के युद्ध के दौरान अफवाहों की ताकत बंगलादेश मुक्ति संग्राम में दिखी थी। एक तरह से अफवाह एक रणनीति है। अपने देश में चुनाव भी धीरे धीर जंग का रूप ले चुकी है और पिछले लोकसभा चुनाव में अफवाहों तथा मिथ्या की भूमिका। बड़े लोगों , नेताओं और पार्टी ने अफवाहों को हथियार बनाया जनता को आतंकित करने का। मारतीय जनता पार्टी द्वारा लगातार यह बात फैलायी जाती रही कि देश का बहुत सारा कालाधन विदेशों में जमा है और उसे लाना जरूरी है देश की खुशहाली के लिये। देह की जनता ने उनपर भरोसा किया और उनकी सरकार बन गयी। उसके बाद विदेशों के कालेधन की अफवाह निष्फल साबित होने लगी तो बात चली कि देश में में भारी काला धन है। इस काले धन को निकालने के लिये अचानक एक हजार तथा पांच सौ के नोट बंद कर दिये गये सरकार और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारी संख्या में इन नोटों की शक्ल में कालाधन जमा किया हुआ है वह बाहर आ जायेगा। प्रधातनमंत्री और भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने कहा कि अर्थ व्यवस्था में 86 प्रतिशत बड़े नोट हैं, जिनका मूल्य 14.50 लाख करोड़ है। बैंक सूत्रों के मुताबिक 2 नवम्बर तक 11 लाख करोड़ रुपये बैंक में जमा किये जा चुके हैं। अगर यह खबर सही है तो इसका मतलब 2 दिसम्बर तक कुल बड़े नोटों का 76 प्रतिशत बैंक में आ गया। यानी बड़े नोटों के 24 प्रतिशत भाग ही अभी बैक में नहीं लौटे हैं। 30 नवम्बर को सरकार ने संसद में कहा था कि 29 नवम्बर तक 8.45 लाख करोड़ रुपये बैंको में लौट आये हैं। बैंकों के आंकड़े बताते हैं कि इसके बाद बहुत बड़ी राशि जमा हुई। अभी रुपये लौटाने की अवधि में 25 दिन और बचे हैं। इन आंकड़ों से कई गंभीर सवाल उठते हैं जिसका उत्तर देना शायद सरकार के लिये कठिन होगा।
पहला सवाल है कि क्या सरकार ने कालेदान के रूप में जिस धन का दावा किया था वह सही राशि थी?
दूसरा कि, जनता ने जो रुपये बैक में जमा किये या बदले वह सफेद धन था या काला धन यह सरकार कैसे अंतर करेगी?
तीसरा कि, क्या अब भी काला धन लोगों के पास बचा हुआ है, क्योंकि सरकार ने जितना काला बताया था वह तो बैकों में वापस आ चुका है।
क्या लोगों अपने काले धन को विभिन्न तरीकों से सफेद धन में
बदल लिया है?
यह अनुमान है कि चलन से बंद किये गये हजार पांच सौ के सभी नोट बैंकों में वापस आ जायेंगे। अब इससे प्रश्न उठता है कि सरकार ने जिस काले धन का दावच किया था वह गलत था या कालाधन गलत हथकंडों के माध्यम से सफेद किया जा चुका है।दौनो सूरतों में मोदी जी की श्शिनियां बढ़ेंगीं।संसद का शीत कालीन सत्र का वैसे भी कबाड़ा हो गया। अब तक विपक्ष पर दोष लगाया जाता था कि उसने बेवजह संसद नहीं चलने दी जिससे जनता के टैक्स के रुपयों का भारी नुकसान हुआ। लेकिन इस बार तो सरकार के कारण संसद नहीं चल पा रही है। यही नहीं अगर सरकार गलत राह पर पायी गयी तो देश भर में बवाल बढ़ेगा तथा सरकार ने जिन आर्थिक सुधारों की योजना बनायीि है वह भी संकट में पड़ जायेगी। यह हैरतअंगेज होगा यदि नोटबंदी के बाद सभी हजार पांच सौ के नोट बैंकों में लोट आते हैं। इसका मतलब होगा कि सरकार ने देश से झूठ कहा था अथवा काला धन रखने वालों को सरकार के इस कदम की जानकारी थी और उन्होंने इसे सफेद धन में बदल सरकार को ठेंगा दिखा दिया। सरकार पर आरोप लगेंगे कि उसके पास बाजार में चल रहे नोटों के सही आंकड़े नहीं हैं। अगर कोई यह कहता है कि बैंकों में जमा रुपयों ममें ज्यादा जाली हैं तब बैकों के कामकाज पर सवाल उठेंगे, जिसका निशाना भी अंतत: सरकार ही बनेगी। इसके बाद बात चलेगी कि क्या गारंटी है कि नये दो हजार और पांच सौ के नोट जाली नहीं बन रहे हैं। इससे तो नया आतंक पैदा हो जायेगा।
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