व्यंग्य : सर ! नोटबंदी से नहीं मिटेगा करप्शन
इसी कोलकाता की शस्य श्यामला भूमि पर 1897 में रोनैल्ड रोश साहब ने प्रमाणित किया था कि कीटाणु लोड करके उड़ने वाले मच्छरादि मलेरिया फैलाते हैं और अगर मलेरिया हो जाता है तो उसका अकसीर इलाज है कुनैन। लेकिन कुनैन से मलेरिया दब तो जाता है पर खत्म नहीं होता। खत्म करने का एक ही तरीका है कि उन कीटाणुओं को खत्म कर दिया जाय। उनकी इस खोज पर दुनिया भर में तालियां बजीं। पटठे ने सिकंदर जैसे विश्वलिजयी को मारने वाले मच्च्र की दवा खोज ली। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि ऐसे ही कुछ साइंसदां मोदी जी के चतुर्दिक घूर रहे हों और उन्हें सलाह दी हो कि नोटबंदी से कालाधन की बीमारखित्म हो जायेगी और चूकी काला धन ही नामक मच्छर ही करप्शन का जीवाणु लेकर उड़ता है लिहाजा कालाधन तो रहेगा नहीं तो करप्शन का भी हरिबोल हो जायेगा। लेकिन वे नहीं समझ पाये या समझा नहीं पाये कि इससे करप्शन नाम की बीमारी मिटेगी नहीं अलबत्ता कुछ दिनों के लिये रुक जायेगी। क्योंकि कालाधन तो फकत लक्षण है बामारी थोड़े ही है। अब देखियेगा कि जितना चाहें कालाधन बटोर लें देखेंगे करप्शन नये लक्षण के साथ उभर आयेगायह एक लाइलाज बीमारी है जो दब तो जाती है पर मिटती नहीं। अभी तो मोदी जी ने सोनम गुप्ता की खाट खड़ी कर दी और अब यचकाचक पिंकी (दो हजार के नोट) आयी। लोगों ने कहा इसका चरित्र अच्छा हे तो कुछ ने कहा कि यह तो महा ठगिनी है। इससे तो अघोषित समपति और बढ़ेगी और यही तो कालाधन में बदलेगा जो फिर से करप्शन को जन्म देगा। इससे कैसे निपटेंगे।
एक मेडिकल पत्रिका में लिखा था कि भारतीयों को अक्सर दिल रोग और मधुमेह हो जाता है, एक तरह से यह इनकी बीमारी है। इसी तरह हम इंडियन लोग में बेइमानी बायोलोजिकली प्रोग्राम्डहैं। अब अगर बेईमानी हम इंडियन लोग जीन्स में है तो क्या उनका उपचार नहीं हो सकता है। जिनेटिक इंजीनीयर इसका इसे ठीक नहीं कर सकते? यह तो केंसर की तरह एक चुनौती है। लेकिन तकलीफ तो ये है कि यह बेइमानी नाम की बीमारी हमारे जीन्स में नहीं है बल्कि इसकी छूत हमारे समाज से हमें लगती है और जो सरकार हमारे समाज में फैलाती है। आजादी से आजतक जो सरकारें आयीं सबने इसमें खाद पानी दिया। यह तो गनीमत है कि हमारे नेता और बाबूगण ने जो हमसे दूरी बना कर रखी है वह गनीमत है नहीं तो जय श्री राम। अब हमने तो यह शासन अंग्रेजों से पाया । अंग्रेजों ने शासन करने के लिये आम आदमी को पेरने के उद्देश्य से अफसर शाही बनायी थी। अब उस पेराई से बचने के लिये चढ़ावा दो तब छूटो वरना पेराई होगी। जो बात रोनाल्ड रोश नहीं समझा पाये लेकिन एक शोडरमन साहब हुये थे उनहोंने तजबीज की थी कि हमारे देश में करप्शन मिटाने के लिये सबसे पहले इन नेताओं और बाबुओं के दिमाग से अहं का कीड़ा मिटाना होगा। क्योंकि जैसे मलेरिया होती ही जाड़ा लगने लगने लगता है वैसे ही नेता या बाबू होते हीं सत्ता का बुखार ग्रस लेता है। जनता को जितना कष्ट होता है नेता उतना ही उबर कर उठता है। अकाल हो या महामारी आखिर में नेता ही लाभ में होता है। अब इस विडमबना को देखिये कि देश की एकता के लिये बंगला, बोजपुरी , पंजाबी मराठी या अन्य भाषायें हैं, अपनी बात कहने समझने के लिये हिंदी और पापी पेट को पालने के लिये अंग्रेजी। नेता एक ऐसी बीमारी है जिसका छूत लगेगा ही। इसलिये , नेता नाम ने कीटाणु को हटाना जरूरी है वरनाह करप्शन नहीं मिटेगा।
Wednesday, December 14, 2016
व्यंग्य : सर! नोटबंदी से नहीं मिटेगा करप्शन
Posted by pandeyhariram at 6:31 PM
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