व्यंग्य : कई गैर जरूरी डर
आपके साथ होता है या नहीं पर मेरे साथ अक्सर होता है कि कहीं बाहर जाने का आमंत्रण मिलता है कुछ दिन वहां रहने का अवसर मिलता है और मैं नहीं जाता। ऐसे ऐसे निमंत्रण मिलते हैं कि सुनकर हैफ होने लगता है कि क्या मैं इस लायक हूं कि मुझे बुलाया जा रहा है। मसलन हाल में एक बहुत बड़े नेता ने बुलाया कि लस्टमानंद आओ
नोटबंदी के प्रभाव पर बातें करनी हे। पर मैने टाल दिया। आप कहेंगे डींग मार रहा है। पर भाई ये हकीकत है कि मैं सारे निमंत्रण टाल देता हूं। एकांत में यह सोच कर दिल टाइटेनिक से भी तेजी से डूबने लगता है कि मैं किसी भी इस तरह के कार्यक्रम में नहीं जा सकूंगा। ऐसा नहीं कि अयोग्य हूं या मूर्ख हूं। आप पूछेंगे कि क्यों ऐसा क्यों? बात ये है कि जब मैं अपने घर से निकलूंगा और हवाई जहाज उड़ान भरते हुये हजारों फुट की ऊंचाई पर पहुंचेगा तो अचानक याद आयेगा कि मैं आते समय घर का ताला बंद किया या नहीं। मेरे एक बुजुर्ग थे उनहें भी यही बीमारी थी कि दुकान बंद करके 6 किमी दूर घर चले जाते थे और आधी रात में अचानक याद आता कि दूकान का ताल बंद किया या नहीं और वे उसी समय घर से निकल पड़ते आधी रात के समय तेजी दौड़ते हुये श्वान बिरादरी की सभाओं से बचते हुये , पुलिस के सिपाही से रिरियाते हुये दुकान पहुंचते और देख कर इत्मीनान करते कि ताला लगा है। यही बात अपने साथ भी है और कई बार ऐसा वाकया हुआ कि लौटती उड़ान से घर लौट आया हूं और दरवाजे पर बंद ताला देख कर सुकून लाभ किया हूं। कहीं जाने के पूर्व बिजली का स्वीच ऑफ कर उसे 25 बार जांचता हूं, गैस का रेगुलेटर बंद कर तीस बार देखता हूं और तालों की तो बात ही नहीं। कई बार यात्रा पर निकला हूं और स्टेशन पहुंचने के बाद यही सब याद आया तो बीबी से कहता हूं , जानमन, ट्रेन लेट है घर लौट चलते हैं। वह मेरी ओर देखती है और आश्वस्त करती है कि ताला मैने खुद बंद किया है। लेकिन बेचैनी तो बेचैनी है। इसका क्या भरोससा घूमने के लोब में बोल दिया हो। ये सब बातें दिमाग में हाई डेसीबल से चीखती रहती है। ऐसा शुरू से नहीं है। शुरू में तो बहुत बिंदास नौजवान था। अक्सर परीक्षा में जाते हुये एडमिटकार्ड घर भूल आया करता था और हॉल में लमबी डांट और चौड़ी जांच के बाद बैठने की इजाजत मिलती थी। इन दिनों बात कुछ दूसरी है। यह भी कम आनंद दायी नहीं है कि अचानक आधी रात को नींद खुले और अंदोरे में आप चुपचाप उठें तथा बंद दरवाजा चेक करने के लिये जाते हुये आगे के दांत तुड़वा लें। डाक्टरों से दिखाया तो बताया कि यह फोबिया है एक गैरजरूरी डर। अब क्या कहूं कि इसमें गैर जरूरी डर क्या है कि कोई बंद ताले को तीन चार बार चेक कर ले। वैसे इन दिनों दो तीन नये फाबियास की चपेट में आ गया हूं यह बताने में डरने लगा हूं कि मुझे फलां फलां जगह बुलाया गया और मैं नहीं गया, यह आलेख कहीं से मार कर लिखा हूं या मोदी के नोटबंदी का विरोधी हूं। आप किसी से ना बताइयेगा।
Friday, December 16, 2016
व्यंग्य : कई गैरजरूरी डर
Posted by pandeyhariram at 10:27 PM
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