दावे केवल जुमलेबाजी हैं
एक हज़ार और पांच सौ के नोट के नोटों का चल;अन समाप्त करने की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री जी ने कहा था की 30 दिसंबर तक सब कुछ ठीक हो जाएगा. आज 30 दिसंबर है और क्या ठीक हुआ यह तो भगवान् ही जनता है. लेकिन उनका यह कदम सही हुआ है अथवा गलत यह भी पता नहीं चल पा रहा है. प्रधान मंत्री जी ने नोट बंदी की घोषणा करते हुए इसका उद्देश्य बताया था कि इससे कला धन खत्म हो जाएगा. उस समय उन्होंने काला धन खत्म करने की दिशा में किये गए अपने प्रयासों को भी गिनाया था.यहाँ तक कि शनि वार को मुंबई में उन्होंने कहा था कि यह अमीरों की तिजोरी में जमा गरीबों का धन निकलने का प्रयास है. दक्षिण पंथी नेता मार्क्स की जुबान बोलने लगा है. 8 नवम्बर को उनकी बात सुन कर ऐसा लगा था कि प्रधान मंत्री जी ने कला धन के दानव को गले से पकड़ लिया है. उन्होंने जिन क़दमों को गिनाया था वे सुनाने में बड़े प्रभावशाली लग रहे थे. प्रधान मंत्री बोलते बहुत प्रभावशाली है , एकदम किसी मंजे हुए अभिनेता की तरह उनकी डायलाग डिलीवरी होती है और उसी के अनुसार उनकी बॉडी लैंग्वेज होती है और होता फेशिअल एक्सप्रेशन. सामने वाला मुग्ध हो जाता है. भाषण के दौरान जनता कोमुग्धा कर देना एक बात है और उस भाषण में कही गयी बात को सही ठहराना दूसरी बात. अब 8 नवम्बर वाले उनके भाषण में से अभिनय तथा प्रभाव के तत्त्व को अलग कर दें तो इस सरकार द्वारा पकडे गए काले धन की संख्या पिछली सरकारों से बहुत ज्यादा नहीं है. चाहे वह यू पी ए की सरकार थी या संयुक्त मोर्चे की.
अब ज़रा आंकड़ों को देखें , प्रधान मंत्री जी ने कहा था कि विगत ढाई साल में उन्होंने यानी उनकी सरकार ने 1,25,000 करोड़ का काला धन एकत्र किया. यह केवल कुल राशि है सरकार ने कोई आंकडा नहीं दिया कि किस मद में कितना मिला या पकड़ा है. लेकिन संसदीय प्रश्नों के उत्तर में वित्त मन्त्रालय ने बताया है कि 65 , 250 करोड़ रूपए 2016 में आय स्वेक्षा घोसना के तहत आये , जिसका 45 % टैक्स में चला जाएगा , 21,354 करोड़ रूपए अघोषित आय पकड़ी गई. 22,475 करोड़ रूपए कर दाताओं से अतोरिक्त वसूला गया. 8,186 करोड़ रूपए एच एस बी सी बैंक की जेनेवा शाखा में भारतीयों द्वारा रखी गयी थी और जिसके बारे में 2011 में फ़्रांसिसी सरकार ने सूचना दी थी. 5000 करोड़ रूपए कुछ भारतियों ने विदेशों में छुपा कर रखा था और इसके बारे में कुछ खोजी पत्रकारों ने अप्रैल 2013 में खुलासा किया था. कुल मिला कर होता है 1,22,265 जो मोदी जी की घोषित राशी के लगभग बराबर है. अगर इसमी से 65,250 करोड़ रूपए अलग कर दिए जाय , क्योंकि ये स्वेक्षा से घोषित आया के मद में आये है तो इसी यह राशी काफी कम हो जाती है. फिर भी इसे भी जोड़ लेते है और इसी परिभाषा को मानते हैं तब भी इतनी ही अवधि में यू पी ए सरकार नें 1,30,800 करोड़ का काला धन पकड़ा था. अब मोदी जी समर्थक कह सकते हैं कि उन्होंने घोटाले बाज यू पी ए सरकार के मुकाबले क़ानून को सख्त किया है जिसमें दंड की भी व्यवस्था है. लेकिन इससे उपलब्धि क्या हुई? कितने लोगों ने आय की खुद बखुद घोषणा की. 1997 में आय की घोषणा करने की योजना चली थी जिसमें लगभग 5 लाख लोगों ने आय की घोषणा की थी. और इससे 33 ,695 करोड़ रूपए की आय का पता चला था. जो कि मौजूदा रूपए के मूल्य के मुताबिक 85 ,153 करोड़ बनता है. यह राशि मोदी जी के वर्मान 65,250 करोड़ से ज्यादा है. इससे साफ़ प्रमाणित होता है कि मोदी जी के प्रयासों से काले डझन पर बहुत ज्यादा आघात नहीं लगा है. अब विदेशों में यहाँ से जो रूपए जा रहे हैं वह देखिये. वाशिंगटन डी सी की संस्था ग्लोबल फिनान्शिअल इंटिग्रिटी के अनुसार 2004 से 2013 के बीच हर साल 51 अरब डालर विदेश गए. इनमें से कुछ लौटे भी. मोदी जी ने 8 नवम्बर को घोषणा की कि इन रुपयों को लाने के लिए विदेशी बैंकों से प्रयास चल रहे हैं. यहाँ यह बता देना ज़रूरी है की यह प्रयास 2009 में लन्दन में जी 20 की बैठक के बाद से चल रहा है. ताकि विदेश लें दें में पर दर्शिता आ सके. हाँ यहाँ यह मना जा सकता है कि मोदी जी नोट बंदी का प्रयास अतीत से चली आ रही धारा में एक महत्वकांक्षी बाँध है. लेकिन उनके बड़े बड़े दावे केवल जुमलेबाजी है.
Thursday, December 29, 2016
दावे केवल जुमलेबाजी हैं
Posted by pandeyhariram at 6:42 PM
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