प्रधानमंत्री जी यह आश्वाशन क्यों?
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 दिसंबर को कानपुर में पार्टी कार्यकर्ताओं की एक रैली में कहा कि “ राजनितिक दलों को चंदे की नियमावली में उन्होंने कोमा तक नहीं बदला है.” प्रधान मंत्री जी का यह दवा गलत है क्योंकि मई में मोदी जी के राज्य मंत्री किरण रिजीजू ने कहा था कि उनकी सरकार ने “ विदेशी चंदा नियमन कानून 2010 में वित्त विधेयक 2016 के जरिये परिवर्तन किया है. इस वित्त विधेयक को संसद ने बजट सत्र के दौरान 5 मई को पारित किया था. वित्त अधिनियम 2016 के विदेश मुद्रा नियमन अधिनियम की धरा 233 के मुताबिक कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी चाहे वह देशी हो या विदेशी अगर विदेश में पंजीकृत हो या उसकी कोई सहायक कंपनी विदेश में हो उसे विदेशी कंपनी माना जाएगा. जबकि कोई भी कंपनी जिसमें 50 प्रत्यिशत से कम विदेशी पूंजी हो उसे अब विदेशी कंपनी नहीं मना जाएगा. यह संसोधन सितम्बर 2010 से लागू माना जाएगा. संसद में कई सांसदों ने इसका विरोध भी किया था और आरोप लगाया था कि सरकार जब एन जी ओ पर रोक लगा रही है तो और कांग्रेस के लाभ के लिए ऐसे क़ानून बना रही है. वित्त मंत्री अरुण जेटली संसद में इसपर बोलने वाले भी थे पर संसदीय नियमो का हवाला देकर स्पीकर नमे इस पर रोक लगा दी. जब धारा 233 पारित हो गयी तो कांग्रेस और भाजपा ने दिल्ली हाई कोर्ट के खिलाफ एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में दायर अपील को वापस ले लिया. दिल्ली हाई कोर्ट ने उक्त दोनों पार्टियों को विदेशी चंदे के मामले में कानून भंग का दोषी बताया था. “ जहां तक चुनाव के लिए दिए गए धन की बात है तो इसमें महत्वपूर्ण है कि उस धन के स्रोत और उसकी वैधता में पारदर्शिता हो.” भाजपा के प्रवक्ता जी वी एल नरसिंह राव ने अप्रैल में कहा था कि प्रस्तावित बदलाव के लिए किसी तरह का समझौता नहीं किया गया है. लेकिन चुनावी चंदे पारदर्शी नहीं हैं क्योकि 20,000 रूपए तक के चंदे के बैर में स्रोत बताना जरूरी नहीं है. अब मजे की बात यह है कि भाजपा, कांग्रेस , बसपा, सीपीआई , सीपीएम और एनसीपी जैसी 6 बड़ी पार्टियों के 2014 – 15 में कुल धन का 60 प्रतिशत इसी तरह के चंदे से आया था. आंकड़ो के मुताबिक़ 2013 – 14 और 2014 -15 भाजपा को 977 करोड़ रूपए इसी अज्ञात स्रोत से मिले थे. कांग्रेस को इसी अवधि में अज्ञात स्रोत से 969 करोड़ की आमदनी हुई थी. एक तरफ सरकार कालाधन ख़त्म करने का अभियान चला रही है दूसरी तरफ राजनितिक दल कानून के बाई पास का लाभ उठा कर करोडो कमा रहे हैं. यही नहीं सरकारी या सियासी रसूख के कारण इनके पुराने जमा नोट भी बनाये में बदल गए. नोट बंदी का विरोध दो एक दल ही क्यों कर रहे हैं और बाकी या तो चुप हैं या केवल गलाबजी कर रहे है हैं. लोगों को यानि आम आदमी को ए टी एम् की कतार में सारे दिन खडा होने के बाद या तो पैसे नहीं मिलते या केवल दो हज़ार मिलते हैं. सोचने की बात है कि नोट छापते हैं तो जाते कहाँ हैं. हाल में चेन्नई शहर में छपे पड़े और 100 करोड़ रूपए त्तथा सवासौ किलो सोना जब्त हुआ था. बाद में पता चला कि इसमें मुख्य मंत्री को प्रसाद पहुँचाने वाले और मुख्या मंत्री के कृपा पात्र मंदिर के पुजारी सामिल थे. सेन्ट्रल बोर्ड ऑफ़ दीरेक्ट टैक्स के अफसर बताते हैं कि राजनितिक दलों के लिए पुराने नोट बदलने के लिए पूरा सिडिकेट चल रहा है. कार्य कर्ताओं का पूरा जथा इस काम में लगा है. इतना होता तो गनीमत थी कई ऐसे डसल भी दिखने लगे हैं जिनका किसी ने नाम ही नहीं सुना. पिछले दिनों चुनाव आयोग ने 255 दलों को अपनी सूची से बहार कर दिया. इन दलों ने 2005 से 2015 के बीच किसी भी चुनाव में एक भी उम्मीदवार नहीं खड़े किये थे. दिलचस्प बात यह है कि इंडिया प्रोग्रेसिव जनता दल का पता वही है जो गृह मंत्री राजनाथ सिंह का है और हिन्दुस्तान कझगम नाम के एक दल का पता दिल्ली में वही है जो जम्मू कश्मीर सी आई डी का दफ्तर है. आयोग की सूची से बहार होने वाले सबसे ज्यादा दल दिल्ली में हैं, इनकी संख्या 52 है. नोत्बंदी के जरिये रस्ते बंद हो रहे हैं और नोट बदलने तथा कालाधन पचाने के तरीके बनते जा रहे हैं. बात घूम फिर कर मोदी जी के कानपुर के उसी भाषण पर आती है जिसमें उन्होंने अपने दल के सदस्यों को मुतमईन किया था कि उन्होंने चन्दा क़ानून में कोई बदलाव नहीं किये हैं. इस आश्वाशन की क्या जरूरत पद गयी थी बताएँगे मोदी जी?
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