विजय दिवस और कुछ भ्रांतियां
भारत पाकिस्तान का तीसरा युद्ध जो 1971 में लड़ा गया वह पाकिस्तानी ऐंठ का माकूल जवाब होने के साथ साथ भारतीय सेना की शौर्य गाथा का सबसे आकर्षक एवं स्वर्णिम पृष्ठ है। यही नहीं इस युद्ध ने भारत के प्रति अंतरराष्ट्रीय साजिशों का भी पर्दाफाश कर दिया। आज के दिन ही 1971 में दुनिया के नक्शे पर एक नये मुल्क का उदय हुआ। इस मुल्क के उदय के पीछे जहां भारत की मित्रता, इंसानियत के प्रति उसकी निष्ठा-प्रतिबद्धता की अनेक कथाएं हैं वही पाकिस्तान और उसकी फौज की बर्बरता -अमानुषिकता की कथाएं दर्ज हैं। पाकिस्तानी सेना ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की धरती पर जितना कुकर्म किया उसकी मिसाल विश्व के अब तक के इतिहास में नहीं है। उस पाशविकता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस काल में इस्ट पाकिस्तान की कोई महिला या किशोर नहीं बचा था जिसके साथ पाकिस्तानी सेना ने सामूहिक यौनाचार ना किया हो।
7 मार्च 1971 को जब बंगलादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर्रहमान ढाका के मैदान में पाकिस्तान के शासन को ललकार रहे थे तो किसी को गुमान भी नहीं था कि नौ महीने नौ दिन बाद बंगला देश एक हकीकत हो जायेगा। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याह्या खां ने पूर्वी पाकिस्तान की जन भावना को कुचलने के लिये 25 मार्च 1971 को फौज को हुक्म दे दिया। और फिर शुरू हुआ निर्दोष लोगों पर पाकिस्तानी फौज का जुल्म। इतिहास गवाह है कि आजतक किसी भी देश में अपनी ही जनता पर अपनी ही सेना ने इतना जुल्म नहीं किया है।
जंग की घोषणा से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जंग के खिलाफ विश्व जनमत को तैयार करने की पुरजोर कोशिश की पर कोई सफलता नहीं मिली।तत्कालीन शक्ति के दो ध्रुवों में से एक अमरीका ने इंदिरा जी के प्रयास को अनसुना कर पाकिस्तान का साथ दिया। हालांकि ततकालीन विशेषज्ञों ने इसका पीछे सोवियत वर्चस्व बढ़ जाने का खतरा बताया। जुलाई 1971 में चीन की गोपनीय यात्रा के दौरान अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन थोड़ी देर के लिये भारत में रुके। उस समय पूर्वी पाकिस्तन में पाकिस्तानी सेना के जुल्म से भागे बंगाली पश्चिम बंगाल में लोगों का जीना हराम कर रहे थे। श्रीमती इंदिरा गांधी बहद तनाव में थीं। उन्होंने विदेश सचिव हेनरी किसिंगर को चाय पर बुलाया ताकि हालात से वाकिफ करायें। इसके पहले वाली शाम को उनहोंने तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख मानेकशा को फोन किया कि वे भी नाश्ते पर आयें आयें और बावर्दी आयें। मानेकशा हैरत में थे उनहें नहीं बताया गया था कि इस नाश्ते पर और कौन आमंत्रित हैं। अब चूंकि प्रधानमंत्री का हुक्म था इसलिये जाना ही पड़ा बावर्दी। वहां नाश्ते पर फकत तीन ही लोग थे। स्वयं इंदिरा जी, किसिंगर और सम्पूर्ण फौजी लिबास में जनरल मानेकशा। इंदिरा जी ने लगातार किसिंगर से कहा कि वे निक्सन को समझाएं कि पाकिस्तान गलत कर रहा है और उसपर लगाम लगायी जाय। किसिंगर ने बात को हल्के में उड़ा दिया। जाते जाते इंदिरा जी ने कहा , ‘‘’ठीक है, अगर वे कुछ नहीं करते हैं तो , मैं इनसे (बावर्दी वहां मौजूद जनरल मानेकशा की ओर इशारा करते हुये) कहूंगी कि कुछ करें।’ अचानक किसिंगर सन्न हो गये। इंदिरा जी ने एक साफ तौर पर बहुत तीखी बात कह दी। अब जनरल मानेकशा को भी समझ में आया कि उनहें क्यों फौजी लिबास में बुलाया गया था। किसिंगर और निक्सन की जैसे हवा निकल गयी। उन्होंने भारत को सबक सिखाने की ठान ली। दिनोंदिन हालात बिगड़ते जा रहे थे और बारत कुछ कर नहीं पा रहा था। उस काल में सीमा के मामलों का प्रभारी सिद्धार्थ शंकर राय को बनाया गया था। 3 दिसम्बर 1971 को कोलकाता में जनसभा को समबोधित करने के पहले इंदिरा जी राय से कहा कि इस सभा के वे दिल्ली चलीं जायेंगी और वे यहीं कुछ दिन ठहरें। किसी को नहीं मालूम क्या होने वाला है। सभा के दौरान इंदिरा जी को एक सहायक ने एक कागज का पुर्जा पकड़ाया। बोलते बोलते वे उनहोंने पढ़ा और पुर्जे को रख लिया। सभा खत्म होने के बाद उनहोंने सिद्धार्थ शंकर राय से कहा कि वे भी साथ चलें। वे हैरत में पड़ गये। विमान में दानो अगल बगल बैटे। 15 मिनट के बाद इंदिरा जी ने विमान की सीट से पीठ टिकायी, वे बिल्कुल शांत दिख रहीं थीं। उनहोंने पार्श्व में बैठे राय को वह पुर्जा पकड़ाया। उसने तीन शब्द लिखे थे। ‘पाकिस्तान हैज अटैक्ड’ यानी पाकिस्तान ने हमला कर दिया है। राय की स्थिति देखने लायक दथी। वे कभी इंदिरा जी को देखते जो एकदम शांत थीं और कभी उस पुर्जे को। अब बात समझ में आयी। पश्चिम बंगाल शरणार्थियों की पीड़ा झेल रहा था और वे चुप थीं केवल इस लिये कि दुनिया उनहें हमलावर कहेगी और विश्व जनमत उनके खिलाफ हो जायेगा। पाकिस्तान ने अवसर दे दिया। उधर, सोवियत वर्चस्व बढ़ने से रोकने के लिये और भारत को सबक सिखाने की गरज से अमरीका ने सातवां बेड़ा भेजकर पाकिस्तान की पीठ ठोंक दी। उसने पश्चिमी सीमा पर हवाई हमला किया। इंदिराजी ने अटक अटक कर देश को सम्बोधित किया। यह आधी रात के आस पास का समय था। बस भारतीय सेना हरकत में आ गयी। पाकिस्तान को घुटने टेकने पड़े। 95 हजार फौजियों के साथ पूर्वी पाकिस्तान में जनरल नियाजी ने 16 दिसम्बर को ढाका में आत्म सर्मपण किया। यह दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर था। इस सरेंडर पर जनरल नियाजी से भारतीय सेना के पूर्वी कमान के प्रमुख जनरल अरोड़ा ने कहा था कि ‘अगर आपकी (नियाजी) जगह मैं होता तो कम से कम 6 महीने तक लड़ता।’ सरेंडर का दृश्य बड़ा ही भावुक था। लाखों लोगों पर हकर बरपाने वाले पाकिस्तानी सेना के जनरल नियाजी के सामने मेज पर सरेंडर के कागजात रखे थे और वह रो रहा था। उनके पास कोई हथियार नहीं था कि वे सरेंडर करते और भारतीय सेना के जनरल गंधर्व नागर उनकी टोपी ओर बेल्ट उतारने के पक्ष में नहीं थे। अंत में तय हुआ कि वे एक पिस्टल लगायें और उसी को सरेंडर कर दें। इस तरह पूरी हुई हथियार डालने की रस्म। उधर अंदोरा होने लगा था। इुंदिरा जी संसद भवन में एक स्वीडिश टी वी को इंटरव्यू दे रहीं थीं उसी समय उनकी मेज पर रखा लाल टेलीफोन बजा। उनहोंने तुरत फोन उठाया और केवल तीन शब्द कहे ‘यस .. यस …थैंक्यू।’ उन्होंने टी वी वाले से माफी मांगी और लोकसभा की ओर बढ़ गयीं। बैठक चल रही थी। भारी शोर के बीच उन्होंने एलान किया ‘ढाका अब स्वतंत्र देश की स्वतंत्र राजधानी है।’
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