नयी अवस्था का सृजन ! यकीनन
वित्तमंत्री अरूण जेटली ने सही कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के साथ देश में एक नयी सामान्य अवस्था का सृजन किया है। बेशक ऐसा ही हुआ है। अब देखें कि मौद्रिक नीतियां गढ़ने का काम अब भारतीय रिजर्व बैंक करता आया है और अब प्रधानमंत्री जी कर रहे हैं। वे बड़े से बड़ा निर्णय एकतरफा करते हैं, किसी के मशविरे को सुनते नहीं हैं। लोगों पर बैंकों से अपना रुपया निकालने पर पाबंदी तो लग गयी पर उन्हें इसके लिये तैयार होने का समय तक नहीं दिया गया। नतीजा हुआ बैंकों और ए टी एम के सामने ‘पीड़ित नर- नारि ’ की अंतहीन कतारें दिखने लगीं, कई लोग नोट प्राप्त होने से पहले मृत्यु को प्राप्त हो गये। लेकिन इससे विचलित हुये बिना सरकार कह रही है कि नयी सामान्य अवस्था है। हकीकत तो यह है कि इस ढाई साल की मोदी सरकार की शासनावधि में कई नवीन समान्य अवस्थाओं का सृजन हुआ। पहले साल में सरकार ने शतदिवस की अवधि पार की फिर साल भर निकाले उसके बाद साल लांघ् गयी और ढाई साल हो गये। इस अवधि में सरकार एक विरोधाभास से निकल दूसरे विरोधाभास में प्रवेश करती रही। आरंभिक काल में ‘लव जिहाद’ से किल कर ‘घर वापसी ’ में गयी वहां से चली तो ‘बीप बैन ’ से ‘दादरी’ तक आयी और फिर ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ से नोटबंदी तक पहुंची। इनमें से हर के बाद थोड़ा बहुत उबाल आता है जिसका स्वरूप नये विवाद के बाद बदल जाता है। बच क्या जाती है - ‘एक नयी अवस्था- न्यू नॉर्मल।’ यह नयी अवस्था जिसे हमारे सांसद कहते हैं कि लोग इसे स्वीकार कर लेंगे। इस नवीन अवस्था को खुद प्रधानमंत्री जी अपने भाषणों और चुप्पी से प्रोमोट कर रहे हैं। यह नयी अवस्था जो गाय के नाम पर हुड़दगी भीड़ पैदा करती है, हम क्या खायें या ना खायें इस बात में सरकार हस्तक्षेप करती है यह एक ऐसी नयी अवस्था है जिसमें सरकार आपको अपने पैसों कजिरूरी खर्चों के लिये निकालने से रोकदेती है। जरा हम पीछे लघ्टें आर इस सरकार के उन गौरवशाली दिनों को याद करें। गिरीराज सिंह तो याद होंगे, ये मंत्री महोदय सभी विरोधी विचार वालों को पाकिस्तान भेजने को तैयार रहते थे।वे पहली बार सुर्खियों 2014 में तब छाये जब उनहोंने मोदी जी की इालोचना करने वालों को पाकिस्तान भेजने की तजबीज कर रहे थे। ये सरकार में बने रहे और उनके साथ जुट गयीं ‘रामजादों से हराम जादों’ शोहरत वाली साध्वी निरंजन ज्योति। क्या यह इस देश के लोगों के लिये नयी अवस्था नहीं है कि इस तरह की सोच और जुबान के लोग हमारे माननीय सांसद और मंत्री महोदय हैं। जब मंत्रियों का जिक्र आया तो एक मंत्री महोदय है महेश शर्मा जो इन लोगों से वरिष्ठ है और उन्हें दादरी में अखलाक के हत्यारों से हमदर्दी जताने में किंचित पापशंका नहीं हुई। इस घटना के साल बर बाद भीड़ ने एक कथित हत्यारे को पीट पीट कर मार डाला था और महेश शर्मा वहां शोक जाहिर करने गये थ तथा उनके साथ थे संजीव बलियान जो 2013 के मुजफ्फरनगर कांड में अभियुक्त हैं। उन्होंने हत्यारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग नहीं की उल्टे कहा कि जिसने बीप खाया है उसे सजा मिलनी चाहिये। प्रधानमंत्री ने जरूर इस हत्या की निंदा की। इसका मतलब यह नहीं है कि कोई गाय के नाम पर किसी को मार डाले और गाय के नाम पर हुकूमत- ए-वक्त उसकी तरफदारी करे और नफरत फैलाने वाले बाषण पर उनसे कुछ ना कहे। सचमुच यह एक नयी अवस्था है। जुलाई 2016 में मंत्रिमंडल में फेरबदल हुआ था और उसमें राम चंद्र कठेरिया को मंत्रिपद से हटा दिया गया था। लेकिन उनकी पार्टी ने उनपर कार्रवाई नहीं की। कठेरिया ने हिंदुओं से अपील की थी कि वे मुसलमानों के खिलफ फैसलाकुन जंग छेड़ें। इस सूची में एक ही नाम नहीं है योगी आदित्यनाथ , संगीत सोम , हुकुम सिंह और सुरेश राणा जैसे लोग भी शामिल हैं। आदित्यनाथ तो घर वापसी आंदोलन के अगुआ लोगों में से एक हैं। सिंह , सोम और राणा तो मुजफ्फरनगर दंगों के समय हिंसा भड़काने वाले भषणों के लिये जाने जाते हैं। हुकुम सिंह तो कई बार दादरी गये और अखलाक के हत्यारों से सहानुभूति जता के आये। और भी ऐसी कई मिसालें हैं जिसे इस सरकार और सरकार की पार्टी ने पिछले ढाई वर्षों में बनायीं हैं। अगर इन्हें सरकार की कालयात्रा के मील के पतथर मान लिये जायें तो उन्होंने कई ऐसी नयी अवस्थाओं का सृजन किया है जो हमारे संविधान के लिये खतरा बन सकता है। ऐसा नहीं कि इसके पहले भारत में क्षतिकारी सरकारें नहीं रहीं हैं। हमारे देश ने तो इमरजेंसी के नाम पर संविधान का स्थगन तक देखा है। यह सरकार भी उसके ही आसपास खड़ी नजर आ रही है। सबसे बड़ा खतरा ये नयी अवस्थाएं हैं। स्मरण रहे कि विधिआधारित समाज के लिये इस चलन को खत्म करना जरूरी है।
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