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Monday, December 12, 2016

व्यंग्य : अथ नोट (बंदी ) वार्ता

व्यंग्य : अथ नोट (बंदी) वार्ता
नोटबंदी को दाद देनी होगी। चारो तरफ इसके ही चर्चे हैं। जिस दिन मोदी जी ने रात में घेषण की थी उसके दो दिन बाद तक इसीके चर्चे थे। इन चर्चों को सुनकर एक पुरानी गजल का मुखड़ा याद आने लगा और ओरिजिनल गजलगो से माफी सहित ,

कल आठवीं नवमबर की रात थी ,शब भर रहा चर्चा तेरा

कोई कहता ज्यादती है कोई कहता सहारा तेरा 

हमभी वहीं मौजूद थे हमसे भी पूछा किया 

हम हंस दिये हम चुप रहे फेसबुकियों से डर था मेरा

 इसके बाद जहां जाइये वहीं चर्चा। लेकिन छूट गयी यारों कु मंडली, सारी गपबाजियां, चायखाने की चुहल ओर सड़कों की मस्तियां। टी वी पर विशेषज्ञों की चहल पहल , किसी के पास कोई बात ही नहीं थी। बकौल इब्ने इंशा,

इस शहर में किससे मिलें

हमसे तो छूटीं महफिलें

हर शख्स ‘तेरा’ नाम ले 

हर शख्स दीवाना ‘तेरा’

 

कुछ भी किसी के पास नहीं था जो था वह बदलने वाला था , बताने वाला नहीं और जो नहीं था वह लाइन में खड़ा पाने का मुंतजिर था। ऐसा कुछ भी नहीं था जो कहा नहीं जा सका और ऐसा कुछ भी नहीं था जो सुना नहीं जा सका। नोटबंदी के हर एंगल इतने परिचित और चर्चा में चलते चलते इतने कुटा गये थे उसपर चलने को जी नहीं चाहता और दूसरी चर्चा के लिये किसी के पास था ही नहीं। किसी माशूका मुद्दतों बाद देख कर मुसकुराई तो आशिक को झुरझुरी आने के बदले रोंगटे खड़े हो गये कि कहीं नोट बदलवाने की गुजारिश ना कर बैटे। दावा है कि इश्क का यह एंगल आज तक कवियों को मालूम नहीं था। घोटाले अखबारों में सिंगल कालम खबर बन गये। जैसे मौसम की खबरें होती हैं। मौसम की खबरें ज्यादा खास हो गयीं , क्योंकि खुले में लाइन जो लगाना है। भारत पाक में तनाव, सीमा पर गोलीबारी , कश्मीर में पथराव सबकुछ किनारे चला गया। जी एस टी वगैरह के भी बारह बज गये। संसद की बैठा के साथा बी यही हुआ। माननीय सांसदों को नोटबंदी के अलावा शोर मचाने के लिये कोई मसाला नहीं मिला। 

इसके बाद आया नोटों का संकट। नोट हासिल करने के लिये खौफनाक कतारें, लोग झोले में खुल्ले लेकर सबिजयां और अनय रोजमर्रा के सामान खरीदते जाते दिखे। बार्टर का पुराना रिवाज फिर खुल गया। नोटबंदी , नोट बदली और नोट निकाली को लेकर हॉरर स्टोरी लिखी जाने लगी। हो कता है कुछ उपन्यास इस पर उपन्यास भी लिख रहे हों या कोई फिल्म भी बन रही हो। यहां तक सरकार भी इसी पर बोलती सुनी जा रही है। कुछ आंकड़ेबाजों का कहना है कि जनता से दोगुना सरकार बोल रही है। काहे कि सरकार पर आरोप है कि वह दोहरी जुबान से बोल रही है। लेकिन इस हड़बोंग में हम कहां जाएं,

 

कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएं मगर

बैंक तेरे, एटीएम तेरे, सड़कें तेरी , रुपया तेरा

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