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Thursday, December 8, 2016

नोटबंदी के असर से हालात बिगड़े हैं

 नोटबंदी के असर से हालात बिगड़े हैं
प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा नोट बंदी की घोषणा किए जाने के ठीक एक महीने के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने स्वीकार किया कि इस कदम से अर्थ व्यवस्था को भारी आघात लगा है और अब इंतेजर करने के अलावा कुछ नहीं हो सकता है. रिजर्व बैंक ने सलाह दी है कि इंतेज़ार करना अक्लमंदी है. गत 8 नवंबर की रात को प्रधान मंत्री ने राष्ट्र के नाम एक संदेश के प्रसारण में कहा था कि रत 12 बजे के बाद से एक हज़ार और पाँच सौ के नोट रद्दी के टुकड़े हो जाएँगे. उसके बाद से लगातार परेशानिया होती  रहीं  और सरकार की ओर से आश्वासन आते रहे, सहयोग की अपील होती रही. कई मंचों से कहा गया कि इससे अर्थ व्यवस्था को आघात लगेगा लेकिन सरकार की ओर से इनकार होता रहा. मौद्रिक नीति के तहत गुरु वार को सलाह दी गयी कि ब्याज दर में कटौती नहीं की जाय क्योकि नगदी के अभाव के कारण भारी ओआरेशानी के संकेत मिल रहे हैं. रिजर्व बैंक ने सरकार के सुर में सुर मिलते हुए कहा है कि  उमीद है कि यह दौर जल्दी ख़त्म हो जाएगा , यह दौर अस्थाई है. 2016- 17 के लिए थोक मूल्य वर्धित विकास ( ग्रॉस वैलू एडेड ग्रोथ)  में दूसरी तिमाही  में मोमेंटम में 50 बेसिस पायंट्स का ह्रास हुआ है. बैंक ने मौद्रिक वर्ष के द्विमासिक मौद्रिक विवरण में कहा है कि ( 1000 और 500) के नोट की वापसी के बाद से अर्थ व्यवस्था पर दुष्प्रभाव पड़े हैं. अर्थ व्यवस्था में वस्तु और सेवा का माप है ग्रॉस वॅल्यू एडेड विकास. वर्ष के जुलाइ से सितंबर की अवधि इस विवरण में कहा गया है कि एक हज़ार और पाँच सौ के नोटों को 8 नवंबर से बंद कर दिया गया. विवरण में कहा गया है कि इस कदम से अर्थ व्यवस्था में ह्रास होगे और औद्योगिक गतिविधियों को आघात लगेगा. विवरण में कहा गया है कि  कुछ विशेष बैंक नोटों को वापस ले लिए जाने से नवंबर दिसंबर में वेतन भुगतान और ज़रूरी सामानो की खरीद में विलंब हुआ, हालाँकि संपूर्ण आकलन बाकी है.वस्तुत बैंक ने विकास की भविष्य वाणी या कह सकते हैं कि उमीदों के आकलन को भी 7.6 प्रतिशत से घटा कर 7.1 % कर दिया है. खास तौर पर बैंक ने कहा है कि नोट बंदी से थोड़े दिनों के लिए बाधा पैदा हुई है. ख़ासकर उन क्षेत्रो में जहाँ जहाँ नगदी  में लेन देन  होता है जैसे खुदरा व्यापार , परिवहन और असंगठित क्षेत्र इत्यादि. इन क्षेत्रो में देश की बहुत बड़ी आबादी कार्यरत है. इसलिए समन्वित माँग के कारण दबाव बढ़ा है और आर्थिक गतिविधि में ह्रास हुआ है. अर्थशास्त्रियो और विश्लेषको ने उम्मीद जताई है की अगर दर में कटौती की जाती है तो मुद्रा स्फिती घटेगी तथा कर्ज़ लेना सरल हो जाएगा और नोट बंदी के कारण  थोक घरेलू उत्पाद में गिरावट के दबाव को झेला जा  सकता है. दूसरी तरफ रिजर्व बैंक ने कहा है कि नोट बंदी से बाधा तो आई है और उससे विकास घटा है पर यह अस्थाई समस्या है. भारत में जिन नोटों को वापस लिया गया उनकी जगह नये नोट दिए जाने में कमी के कारण इस वर्ष विकास पर प्रभाव पड़ेगा. अब इनके प्रभाव और उसकी अवधि के पूर्ण आकलन के लिए और अधिक आँकड़े तथा अनुभव का उपयोग करना ज़रूरी है. मौद्रिक नीति को तय करने के पहले  लघु अवधि के प्रभाव के परिदृश्य के प्रति सावधानी अपेक्षित है. अगर जैसी उम्मीद है विकास हुआ तो अर्थव्यवस्था फिर से सुधार सकती है. यह " इंतज़ार करो और देखो" वाला नज़रिया बैंक के बयान में आया है साथ ही उमीद ज़ाहिर की गयी है कि नोट बंदी और उसकी जगह नोट नहीं दिए जाने के कारण क्या होगा यह जानने के लिए सबसे पहले महँगाई को नियंत्रित रखना होगा. महँगाई के कारनो को देखते हुए मौद्रिक नीति के रुख़ को तय करने के पहले नोट बंदी के अस्पष्ट प्रभाओं को भी देखना होगा. अतएव अभी यह देखना होगा और इंतज़ार करना होगा कि ये गुणक कैसे प्रभाव डाल रहे है. इसी कारण पॉलिसी रेपो  दर को इस आकलन में रोक कर रखा गया है.  यहाँ यह बता देना जरूरी है कि रेपो रट क्या है  और यह कैसे प्रभाव डालता है.रेपो रेट वो ब्याज दर है, जिस पर रिजर्व बैंक कमर्शियल बैंकों को  कर्ज देता है. अगर रेपो रेट कम हो जाता है तो इसका सीधा फायदा ग्राहकों को कम ईएमआई के रूप में मिलता है. यानी रेपो रेट में बेसिस प्वाइंट की कटौती से बैंकों को आरबीआई को कर्ज पर कम ब्याज देना पड़ता है और ग्राहकों को इसका सीधा लाभ कम ईएमआई के रूप में मिलता है.





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