कश्मीर की सबसे बड़ी समस्या क्या है
कश्मीर में अक्सर सुनाने में आता है कि वहां आतंकियों के हमले में सुरक्षा बलों के जवान शाहीद हो गए या घायल हो गए. नौजवानों ने फ़ौज पर पत्थर फेंके बेशक फ़ौज की जवाबी करवाई कुछ नौजवान घयल हो गए या मारे भी गए. ऐसी घटनाएँ अक्सर होती हैं, कुछ अखबारों की खबर बनती हैं कुछ नहीं बनती हैं. लेकिन कोई यह नहीं सोचता कि ऐसा होता क्यों है. सबसे बड़ी बात है कि कश्मीर के लोगों ने सरकारी तंत्र से डरना छोड़ दिया है. मनोविज्ञानी कहते हैं कि जब कोई डरता है तो भागता है. मनो चिकित्सक कहते हैं की डर पर विजय हासिल करनी होगी. लेकिन कश्मीर के सन्दर्भ में विगत 27 वर्षों में डर के अर्थ बदल गए हैं. बड़े पुलिस अफसरों और सेनाधिकरिओं का कहना है कि 2008 , 2010 और 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद हथियार बंद प्रदर्शन के बाद कश्मीर के नौजवानों में मौत का खौफ ख़तम हो गया है. लेकिन यह केवल आतंकियों के मामले में ही नहीं है. कश्मीर के बहुत से नौजवान खास कर वे जो 1989 के बाद पैदा लिए हैं उनमें भी मौत का खौफ खत्म हो गया है. यही कारण है कश्मीर में 2008 से 2016 तक हर गर्मी में वहां विद्रोह दिखने लगता है. 2016 में तो यह जुलाई में शुरू होकर 4 महीनों तक चला. गृह मन्त्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 7500 लोग गिरफ्तार किये गए. ऐसी स्थिति में नौजवानों के लिए क्या विकल्प रह जाता है. सरकार जान बूझ कर मतभेद के सब तरीकों पर पाबंदी लगा दे और जनता की रैली को हमलावर मान ले और किसी राजनितिक समस्या का फौजी हल खोजे तो ऐसे में क्या होगा.? सरकार क्या अपेक्षा करती है. कश्मीर 8 जुलाई से अशांत है और वहां की पी डी पी – भाजपा सरकार सामान्य हालात के लिए ताक़त का गैर जरूरी इस्तेमाल करती है.वहां अखबार पर पाबन्दी लगी है. अखबार पर आरोप है कि वह लोगों को हिंसा के लिए उकसाता है. अब सवाल है कि कश्मीर के नौजवान क्यों डरना छोड़ दिए? क्यों कश्मीरियों ने भारत समर्थक राजनीतिज्ञों के मरने पर शोक मनाना छोड़ दिया ? क्या कारण है कि कश्मीर की पांचवी पीढ़ी ने नै शब्दावली सीख ली, जिसमे ए से अट्रोसिटी यानि अत्याचार , बी से बुलेट, और सी से कर्फ़ु हो गया है. क्या भारत और पकिस्तान के राजनीतिज्ञ कश्मीर में यथास्थिति बनाए रख सकती है. दिल्ली को यह मानना होगा कि कश्मीर के नौजवान पकिस्तान की कठपुतली नहीं हैं. कश्मीर का अध्ययन करने वालों ने हरचंद चेतावनी दी है कि अगर कश्मीर संकट का सार्थक हल नहीं खोजा गया तो आने वाले दिन इतने खतरनाक हो सकते हैं कि सोचा नहीं जा सकता है. इस समस्या का शांतिपूर्ण समाधान जरूरी है. ताकत से कुछ नहीं हो सकता. बल प्रयोग यकीनन असफल होगा. दिखावटी मरहम पट्टी काम नहीं करेगी. यह याद रखें कश्मीर फिर भड़क सकता है. अतः कश्मीर जब शांत है तब ही इसका समाधान खोजा जाय . कश्मीर अगर भारत का अभिन्न अंग है तो कश्मीरी भी पकिस्तान के एजेंट नहीं हैं. मीडिया का एक हिस्सा और कुछ राजनीतिज्ञ जो इनपर ऐसी तोहमत लगाते हैं वे जान बूझ कर इन नौजवानों को अपमानित करते हैं. कश्मीर की जनता का अपना राजनितिक हक़ है जिसे राजनीतिज्ञ अपराध बना देते हैं. यह जानना जरूरी है कि कश्मीरी कौन हैं , जबकि यह बताने कोस्झिश की जाती है कि कश्मीरी क्या हैं. भारत के राजनितिक प्रभुओं को कश्मीर के बारे में सच जानने की जरूरत है और इस सच से मुल्क को वाकिफ कराने की जरूरत है.
इतिहासकार सुनील खिलनानी ने अपनी पुस्तक “ आईडिया ऑफ़ इण्डिया “ में लिखा है कि सरकार कश्मीर और नगा लैंड में फ़ौज से कंट्रोल करना चाहती है जबकि आज़ादी के बाद से कश्मीर को लेकर कई बार जंग हो चुकी है. भारत सरकार के पास असीम ताकत है लेकिन कई मामलों में उसने ताकत का गलत प्रयोग किया है. कश्मीर अपनी समस्याओं का शांतिपूर्ण समाधान चाहता है. बहुत कश्मीरी भारत और पकिस्तान के बीच दोस्ताना भी चाहते हैं. कश्मीरी भारत पाक की दुश्मनी का दंड भोग रहे हैं. इसके लिए दूरदर्शिता जरूरी है जिसकी भारत और पकिस्तान दोनों में कमी है.
Monday, December 19, 2016
कश्मीर की सबसे बड़ी समस्या क्या है
Posted by pandeyhariram at 6:34 PM
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