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Wednesday, December 14, 2016

चौपट खेती : बड़े संकट कस संकेत

चौपट खेती : बड़े संकट का संकेत
जब भारतीय अर्थ व्यवस्था में मंदी का दौर था तब भारतीय कृषि पंगु हो गयी थी और देश में अकाल के लक्षण दिखायी पड़ने लगे थे। इसके बाद हालात सुधरे लेकिन अचानक सूखा पड़ जाने के कारण विगत दो वर्षों से लगातार खेती चौपट होती रही और अब अचनक नोटबंदी से किसानों पर भारी आघात पहुंचा है। कुछ दिन के बाद इसकी सही तस्वीर सामने आयेगी कि कितना घातक प्रभहाव हुआ है इस नोटबंदी, परंतु कृषि की सुनहरी तस्वीर दिखाने वालों की पोल अब धीरे धीरे खुलने लगी है। शहरी इलाकों में नोटों कमी साफ दिख रही है। ए टी एम मशीनों के सामने सर्पीली कतार और उस कतार में खड़े लोगों कीचिंतित सूरतें ही सारी कहानी कह दे रहीं हैं। गांव गिरांव की तस्वीर तो और भी कारुणिक है। पर्याप्त संख्या में बैंक नहीं हैं , बैंक हैं तो रुपया नहीं है। कई ऐसे किसान आपको राह चलते मिल जायेंगे जो कई दिन कतार में खड़े रहे और खाली हाथ लौटे। इसमें सबसे ज्यादा मुश्किल यह है कि लगभग 81 प्रतिशत ग्रामीणों की बैंक तक पहुंच नहीं है। सरकार का कृषि मंत्रालय दावा कर रहा है कि गत वर्ष जितने रकबे में रबी की बोआई हुई थी इस साल उससे ज्यादा हुई है पर हकीकत दूसरी बात कहता है। सरकार की चालाकी देखिये कि वह तुलना पिछले साल यानी 2015 के आंकड़ों से कर रही है जबकि सब जानते हें कि उस वर्ष सूखा पड़ा था और रबी को बुवाई कम हुई थी। सरकार का आंकड़ा है कि इस साल 4 दिसमबर तक 17.4 मिलीयन हेक्टेयर रबी की बुवाई हुई है जो गत वर्ष यानी 2015 के उस तारीख तक के 16.7 मिलीयन हेक्टेयर से ज्यादा है परंतु 2013 के 21.3 और 2014 के 20.9 से तो कम है। सभी जानते हें कि उस वर्ष सूखा के कारण अकाल पड़ा था। नोटबंदी के कारण किसानों की मुश्किलों पर बहुत कुछ कहा जा चुका है कि वे बुवाई नहीं कर पा रहे हैं खेती के लिये जरूरी चीजें मसलन  खाद , बीज इत्यादि नहीं खरीद पा रहे हैं साथ ही उनके घरों में जो खरीफ की फसल पड़ी है उसे बेच भी नहीं पा रहे हैं। पहले साहूकार कर्ज देते थे अब वह बी नहीं मिलता। मंडियां मंदी से गुजर रहीं हैं अनाज बिक नहीं रहा है। पैसों के अभाव से मांग घट गयी है और फल सब्जी र्जैसे उनपादन बेकार हो रहे हैं। दो दिन पहले की घटना इस स्थिति को सबसे बढ़िया समझा सकती है कि छत्तीसगड़ कंे पठथाल कस्बे में टमाटर उगाने वाले किसानों नेटिमाटर को दो किलोमीटर तक सड़कों पर बिछा दिया था। क्या करते टमाटर बिक नहीं रहे थे भाव लगातार गिर रहे थे। कुछ दिन पहले की ही घटना है कि किसानों ने लखनऊ में विधान सभा भवन के सामने मुफ्त में आलू बांटा था। इस नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर फल और सब्जियां उगाने वालों पर पड़ा है। इनकी कीमतें आहदा रह गयीं हैं। खबर है कि बिहार में गोभी 1 (एक)रुपये किलो बिक रही है। पंजाब के कोल्ट स्टोरेज में लगभग तीन लाख टन आलू के बीज पड़े हैं कोई खरीददार नहीं मिला। दुग्ध उत्पादन में लगे किसानों का संकट बड़ा है कि वे मवेशियों का चारा नहीं खरीद पा रहे हें।सरकार कोई सहायता नहीं दे पा रही है ,  को ऑपरेटिव बैंक पंगु हो गये हैं और स्थानीय सूदखोर इस अवसर का लाभ उठा रहे है। विगत दो वर्षों से सूखे के कारण किसानों की हालत खराब थी इस वर्ष मानसून अच्छा था और थोड़ी उम्मीद बंदा थी पर नोटबंदी ने सब खतम कर दिया। इस स्थिति का दूरगामी असर पड़ेगा। नोटबंदी से आाखिर क्या हासिल हुआ। अमीर तो ज्यादा प्रभावित हुये नहीं पर गरीबों का सांसत हो गयी।

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