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Wednesday, December 7, 2016

व्यंग्य : इंडिया में रहने की शर्त

व्यंग्य: इंडिया में रहने की शर्त
इन दिनों बारत कई टुकड़ों में बंट गया है , क्षमा करेंगे गलती हो गयी हमें भारत का समाज कहना चाहिये था, जबान फिसल गयी। हां तो इन दिनों भारत का समाज या भारतीय मानस कई टुकड़ों में बंट गया है। वैसे ऐसा विभाजन पहले भी था लेकिन उसके टुकड़े थोड़े कम थे जैसे हिंदू और मुसलमान केवल दो टुकड़े और धीरे से एक नया टुकड़ा भी आ गया था समाज विरोधी टुकड़ा। लेकिन इन दिनों तो बाई साहब न जाने कितने टुकड़े हो गये हैं हमारे समाज के। मोदी समर्थक फिरका, मोदी विरोधी हिस्सा, नोटबंदी समर्थक - नोटविरोधी , गौ रक्षक - गौ रक्षक विरोधी यही नहीं राजनीतिक दलों में भी कई टुकड़े हो गये हैं एक में कई कई, जूतों में दाल तकसीम की जा रही है। टुकड़े इतने हैं कि आप गिन नहीं पायेंगे। इन टुकड़ों की जानकारी के लिये मैंने एक विशाल पत्रकार के चरण कहे और विनती की कि बंधु इनके बारे में कुछ तो बताओ। मेरी आर्त वाणी सुनकर संभवत: वे मेल्ट कर गये और जिसतरह ग्राह से ग्रस्त गज की आर्त वाणी सुनकर , ‘बैकुंठ में शब्द भये गरुड़ तज के धाये ’ वाल गेस्चर अपनाते हुये उस पत्रकार प्रभु ने अधजली सिगरेट को भूमिसात कर कहा कि मैं उतनी डिटेल क्या करुंगा तुम खुद सुनो जितनी जरूरत हो रख लेना। उनका लेहजा कुछ ऐसा था मानों कह रहे हों कि नोटबंदी के कारण बेकार हो गये नोटों का यह थैला लो जितना बदलवा सको बदलवाना बाकी गंगा में गिराना। उन्होंने मोबाइल निकाल स्पीकर ऑन किया तथा अखिलेश जी को मिलाया। बाद दुआ सलाम के पूछा ‘यह बताइये कि विपक्ष के कर्तव्य क्या हैं?’ उन्होंने कहा ‘आपका मतलब है कि मेरे चाचा जी विपक्षी नता है या ठाकुर चाचा खलनायक नेता हैं।’ पत्रकार महोदय ने कहा , ‘नहीं, कोई यादव कुनबा में हाथापायी से दिलचस्पी नहीं रखता। मेरा मतलब है कुल मिला कर विपक्ष का क्या कर्तव्य है?’ उन्होंने कहा,‘बहन जी को चाहिये कि हमारे काम में सहयोग दें क्योंकि सरकार के काम मेंसिहयोग देना विपक्ष का कर्तव्य है। ’ पत्रकार भाई ने कहा , अरे नहीं मैं आपके पारिवारिक दल के बारे में पूछ रहा हूं कि संसद में विपक्ष का क्या कर्त्तव्य है? उन्होंने छूटते ही कहा संसद में हम मोदी जी का विरोध करते हैं। यही कारण है कि हमने नोटबंदी पर रियशेक्शन दिया था कि कालाधन अच्ची चीज है। ओह, तो क्या अगर मोदी जी कहते हैं कि ‘आपके पिता नेताजी सीजंड (मंजे हुये) पालिटिशियन हैं तब आप क्या करेंगे?’  उनहोंने कहा कि हम विरोध करेंगे कि नेताजी को सिजनल(मौसमी) पॉलिटिशियन क्यों कहा? पत्तकार महोदय ने फोन रख दिया। उनहोंने फिर मायावती जी को मिलाया उनका भी उत्तर था कि वे केंद्र के हर कदम का तबतक विरोध करेंगी जब तक खुद पी एम ना बन जाएं। 

उन्होंने  एक पूर्वी राज्य की सी एम को मिलाया तो जवाब में आग का गोला आया कि ‘मैं विपक्षी नेता के तौर पर पैदा हुई हूं और विपक्ष का काम विरोध ही है। अगर मोदी गरीबी हटाने की भी कोई योजना लाते हैं तब भी विरोध करुंगी।’ पत्रकार महोदय ने फोन काट दिया। फिर कहा कि पपू को मिलाना तो बेकार है क्योंकि वे खुद की कुछ कहते नहीं। बिहार के सी एम को मिलाया गया और वही सवाल पूछा गया। नीतीश बाबू ने कहा,. मैं उन सब बातों का विराध करूंगा जो भारत के लिये गलत होगा हमारा इंडियन पॉलिटिकल पार्टी है न कि आपोजिट इंडिया पार्टी। अब उड़ीसा वाले सी एम साहब को मिलाना व्यर्थ था क्योंकि इंडियन पॉलिटिशियन हैं आपोजिट इंडियन पॉलिटिशियन नहीं। यही हल समाज का भी है अपोजिट मोदी यानी अपोजिट इंडियन। आप किसी सूरत में निष्पक्ष रह ही नहीं सकते अगर इंडिया में रहते हैं तो। आजकल इंडिया में रहने की एकमात्र शर्त है कि अपनी पीठ पर किसी ना किसी का मुहर लगवा लें। बिना मुहर के इंडिया में वास बेकार है।

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